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मित्रो यदि आप भगवान श्री कृष्ण को मानते हैं उनकी पूजा करके हैं और उनकी भक्ति में लीं रहते हैं तो आपके लिए भगवत कथा का रोजाना अध्यन करना बहुत ही मददगार साबित होगा और आपकी सभी मनोकामनाए पूरी होंगी.
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श्रीमद्भागवत पुराण क्या है | Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF
श्रीमद भागवत कथा पुराण 18 पुराणों में से पाँचवा सबसे प्रमुख पुराण है। यह श्री नारद मुनि जी की प्रेरणा पर महर्षि वेदव्यास जी द्वारा वेदांत, वेदों और पुराणों में प्रकाश डालने के बाद श्रीमद् भागवत कथा लिखी गयी थी.
इसमें आपको 18000 श्लोक 12 अलग-अलग स्कन्द और 335 अध्याय एक साथ देखने को मिल जाते हैं।
महर्षि वेदव्यास जी के छोटे पुत्र श्री सुखदेव जी के द्वारा सबसे पहले “राजा परीक्षित” को श्रीमद् भागवत कथा सुनाई गयी थी. श्रीमद् भागवत कथा पुराण सुनने या पढ़ने से हमें भगवान श्री कृष्ण जी के बचपन के बाल लीलाओं और बल के बारे में अद्भुत जानकारी मिलती है।
इसके साथ साथ विष्णु भगवान के अलग अलग आतारों के बारे में भी जानने को मिलता है.
श्रीमद् भागवत कथा प्रथम दिवस
यदि आप Shrimad Bhagwat Katha का प्रथम दिवस जो की बहुत ही जरूरी होता हैं अगर उसे सुनना चाहते हैं तो भागवत कथा वाचक प्रियंका जी सुना रही हैं इसे बड़े ध्यान से सुनिये गा और यदि आप सीधे Shrimad Bhagwat Katha पढना चाहते हैं तो Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download Link दिया गया हैं उसपर क्लिक करके आप डाउनलोड कर सकते हैं.
श्रीमद भागवत कथा परिचय
Shrimad Bhagwat Katha सम्पूर्ण भारत में विख्यात पुराण है महर्षि सूत जी ने बताया हैं की जब भी Shrimad Bhagwat Katha का पाठ होता था तब तब वहा कथा को सुन रहे सभी साधू संत कथा में इस तरह लीं हो जाते थी की वह अपने आँखों से यह सभी घटनाओ को होते हुए देख रहे हों. वे अपने आप को Shrimad Bhagwat Katha Puran में ही समाहित कर लेते थे.
जब यह कथा महर्षि सूत जी के द्वारा अन्य साधू संतो को सुनाई जा रही थी तब वाही साधू और संत भगवान विष्णु के विभिन्न विभिन्न अवतारों के बारे में पूछते हैं तब उन्होंने बताया की और उन्होंने बताया कि 12 स्कंद पुराणों में भगवान विष्णु के भिन्न – भिन्न अवतारों का वर्णन पहले स्कंद पुराण में किया गया है।
सभी संत और साधू महर्षि सूत के द्वारा सुनाई जाने वाली कथा को बहुत ही ध्यान पूर्वक सुना करते थे जिसमे भगवन विष्णु के भिन्न – भिन्न अवतारों के बारे में बताया जाता हैं.
यदि आप भी Shrimad Bhagwat Katha को धयन से पढ़ते और सुनते हैं तो आपको भी भगवन विष्णु के अलग अलग अवतारों के बारे में सीखने को मिलेगा.
श्रीमद भागवत कथा की कहानियां | Stories of Shrimad Bhagwat Katha
अगर आप भी श्रीमद भागवत कथा की कहानिया सुनना चाहते हैं तो खास आपके लिए प्रियंका जी के द्वारा सुनाई गयी मधुर बोली में यह कहानी आप सुन सकते हैं इसके लिए मैं वो वाला विडियो निचे लगा दिया हैं इसको आप आराम से सुनिए इसको सुनने के बाद आपको बहुत ही सुकून मिलेगा और आपको कई साड़ी ज्ञान की बाते भी सीखने को मिलेंगी.
तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आप लोगों ने ऊपर दी गई नहीं श्रीमद् भागवत कथा की कहानी को संपूर्ण तरीके से सुना होगा यह आप सुनेंगे तो आपको बहुत ही आनंद महसूस होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा इसके अलावा आपको श्रीमद् भागवत कथा पुराण भी सुनना चाहिए|
इससे आपको भगवान श्री कृष्ण और विष्णु जी के अलग अलग होता है और उनके बचपन की कहानियां जो कि सच में बहुत ही ज्यादा अद्भुत है वह आपको बहुत गुस्से खाएंगे और आपके जीवन में सही कार्य को कैसे करना है और अगर आप Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download करना चाहते हैं डाउनलोड बटन पर क्लिक करके डाउनलोड करें.
श्रीमद् भागवत कथा के नोट्स
मित्र यदि आप Shrimad Bhagwat Katha को पसंद करते हैं और उसमे रूचि भी रखते हैं तो आप Shrimad Bhagwat Katha Notes को डाउनलोड कर सकते हैं इसका फायदा यह हैं की नोट्स को पढने कम समय लागत हैं और इसमें कम शब्दों में ही बहुत अच्छी जानकारी मिल जाती हैं यदि आप श्रीमद् भागवत कथा के नोट्स PDF में डाउनलोड करना चाहते हैं तो दिए गये लिंक पर क्लिक करें.
क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण चीजों में अधिक ध्यान दिया जाता है जिसके वजह से कम धयन में अधिक जानकारी प्राप्त हो जाती हैं
यदि आप सम्पूर्ण Shrimad Bhagwat Katha पढना चाहते हैं तो आप बुक की पीडीऍफ़ को डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं डाउनलोड करने के लिए लिंक पर क्लिक करें.
भागवत कथा का महत्व
यदि देखा जाये तो हमें भागवत कथा का महत्व बताने की कोई जरूरत नहीं हैं क्योंकि यदि आप हिन्दू हैं तो आपको हमारे धर्म में भागवत कथा का क्या महत्व महत्व हैं आचे से पता होगा आपके घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता हैं तो भगवत गीता का पाठ किया जाता हैं जिसमे भगवन विष्णु के भिन्न भिन्न अवतारों का वर्णन किया जाता है और भगवान श्री कृष्ण की अद्भुद्द बाल लीलाओं का वर्णन होता है. जो की आप Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download कर सकते हैं.
हमारे हिन्दू धर्म में भगवत कथा का उतना ही महत्वा हैं जितना की हमारे शरीर के अन्दर आत्मा यदि हमारे शरीर में आत्मा न हो तो हमारा शरीर किशी काम का नहीं होगा उसी प्रकार से Shrimad Bhagwat Katha का हमारे हिन्दू धर्म की आत्मा है.
Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download
दोस्त जो मैं आपको श्रीमद् भागवत कथा की पीडीएफ उपलब्ध कराने वाला हूं उसके बारे में आपको कुछ बताते हैं जैसे कि इसको किसने लिखा है और किस भाषा में है यह कितने MB की आपको डाउनलोड करनी पड़ेगी और इसमें कुल कितने पेज आपको देखने को मिल जाते हैं साथ ही इसके कैटेगरी के बारे में भी आपको पता चलेगा
तो दोस्तों अगर आप Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download करना चाहते हैं तो डाउनलोड बटन पर क्लिक करके इसे डाउनलोड कर सकते हैं और इसे आप अपने कंप्यूटर और फ़ोन दोनों से ही इस्तेमाल करके जब चाहे तब पढ़ सकते हैं इसमें आपको किसी भी इंटरनेट की आवश्यकता नहीं पड़ेगी
पुस्तक का नाम | श्रीमद भागवत कथा | Shrimad Bhagwat Katha PDF Hindi |
पुस्तक का लेखक | वेद व्यास |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
पुस्तक का आकार | 56 MB |
पुस्तक में कुल पृष्ठ | 977 |
पुस्तक की श्रेणी | Religion & Spirituality. |
Website Name | Fullformsinhindi.net |
श्रीमद भागवत महापुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF Download
दोस्तों अगर आप श्रीमद् भागवत महापुराण गीता प्रेस गोरखपुर पीडीएफ डाउनलोड करना चाहते हैं तो दोस्तों इसके लिए आपको बहुत आसान तरीका सिर्फ आपको डाउनलोड बटन पर क्लिक करना है और वहां से आप श्रीमद् भागवत महापुराण गीता प्रेस डाउनलोड PDF कर सकते हैं डाउनलोड करने के बाद में अपने फोन के द्वारा एक्सेस करके से जब चाहे तब बढ़ सकते हैं और आपको मैं मुफ्त में उपलब्ध करा रहा हूं
FAQs – Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download
श्रीमद् भागवत कथा कब सुननी चाहिए?
श्रीमद् भागवत कथा पुराण का आयोजन भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, आषाढ़ और श्रावण के महीने श्रेष्ठ होते है। इन महीनो में कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति आसान हो जाती है।
श्रीमद् भागवत कथा कैसे पढ़े?
कथा में वैष्णव ब्राह्मण भगवान को वक्ता के रूप में वर्णन करें वक्ता वेद शास्त्र की स्पष्ट व्याख्या करने में समर्थ हो दृष्टांत देने में कुशल हो और कथा में पांच ब्राह्मणों का वर्णन करें जो गणपति गायत्री और द्वादशाक्षर मंत्र का जप करें तथा भागवत और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने वाले हो।
श्रीमद्भागवत की कीमत क्या है?
श्रीमद् भागवत की संहिता की कीमत भिन्न हो सकती है, इसके अलावा इसकी कीमत स्थान, समय, संस्था, समय के साथ बदल सकती है। आप किसी पुस्तक की दुकान से या ऑनलाइन खरीद सकते हैं,
जो आपको समय, स्थान और संस्था के साथ समझ करने को मजबूत करेगा। कुछ स्थानों पर यह नि:शुल्क में उपलब्ध हो सकता है और कुछ स्थानों पर आपको उसकी कीमत में खर्च करना हो सकता है।
श्रीमद् भागवत कथा पढ़ने से क्या होता है?
इसे सुनें
भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद् भागवत मोक्ष दायिनी है। इसके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं। श्रीमदभागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है
श्रीमद् भागवत कथा क्यों सुननी चाहिए?
भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। इसके अलावा रोग-शोक, पारिवारिक अशांति दूर करने, आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली के लिए इसका आयोजन किया जाता है। से साक्षात्कार कराता है। भागवत कथा का आयोजन करने तथा सुनने के अनेक लाभ हैं
भागवत का मूल मंत्र क्या है?
इसे सुनें
एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।। अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्ण:दामोदरं वासुदेवं हरे। श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकी नायकं रामचन्द्रं भजे।।
क्या स्त्री कथा कर सकती है?
कदापि नही । वर्तमान की कथाओं में तो श्रीमद्भागवत के दर्शन भाग को तो छोड़ ही दिया गया है (राजा चित्रकेतु की कथा , जड़भरत और रहूगण की कथा, एकादश स्कन्द आदि आदि ये सब तो सुनने को भी नही मिलता ) और कथा भाग में भी महान अशुद्धियां इन कथावचिकाओं के द्वारा होती है । बस केवल फ़िल्मी धुन पर “राधे राधे” के जयकारे लगाए जा रहे है।
श्रीमद् भागवत का पहला श्लोक क्या है?
श्रीमद् भागवत का पहला श्लोक निम्नलिखित है-
आदौ देवकी देव गर्भजननं, गोपी गृहे वद्र्धनम्। माया पूज निकासु ताप हरणं गौवद्र्धनोधरणम्।। कंसच्छेदनं कौरवादिहननं, कुंतीसुपाजालनम्। एतद् श्रीमद्भागवतम् पुराण कथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्।।
श्रीमद भागवत का अर्थ क्या है?
श्रीमद भागवत का अर्थ जब सौभाग्य का उदय होता है तभी भागवत कथा सुनने मिलती है। भगवान सत्य स्वरूप हैं। चित्त स्वरूप हैं।
श्रीमद् भागवत कौन लिखा है?
परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है।
क्या हम भागवतम को घर पर रख सकते हैं?
जी हाँ, घर में श्रीमद्भागवत गीता रखते हैं, तो रखें ये ध्यान-
ध्यान रहे, कि ऐसा कोई काम भूलकर भी ना करें, कि घर में पवित्रता का संचार खत्म हो जाए. 2-गीता को भूलकर भी जमीन पर ना रखें, इसे हमेशा काठ की लकड़ी के स्टैंड पर रखें, अगर किसी वजह से आपको काठ की लकड़ी नहीं मिल रही है, तो आप भागवत गीता को लाल कपड़े में लपेटकर रख सकते हैं.
भागवत कितने दिन तक होता है?
हमारे यहाँ सात दिन तक सत्पुरुषों का बड़ा दुर्लभ समागम होगा और अपूर्व रसमयी श्रीमदभागवत कथा होगी। आप लोग इस श्रीभगवद रसके रसिक है। अतः श्रीमद भागवत कथा का रसामृत पान करने के लिए प्रेमपूर्वक शीघ्र पधारने की कृपा करे। यदि आपको अवकाश न हो तब भी आपको समय निकालना चाहिए।
भागवतम क्यों महत्वपूर्ण है?
श्रीमद्भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी है तथा आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। इसके अलावा रोग-शोक, पारिवारिक अशांति दूर करने, आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली के लिए इसका आयोजन किया जाता है।
श्रीमद् भागवत कथा कैसे सीखे?
श्रीमद् भागवत कथा पुराण का आयोजन प्रायः सभी लोगो के सहयोग और उनके धन के द्वारा ही होता है। सबसे पहले किसी विद्वान ज्योतिषी को बुलाकर शुभ मुहूर्त के बारे में पूछना चाहिए। फिर जिस प्रकार एक गरीब कन्या की विवाह के लिए धन एकत्रित किया जाता है वैसे ही सभी लोगो का सहयोग लेना चाहिए।
गीता का कौन सा अध्याय पढ़ना चाहिए?
इसे सुनें
इसमें शनि संबंधी पीड़ा होने पर प्रथम अध्याय का पठन करना चाहिए। द्वितीय अध्याय, जब जातक की कुंडली में गुरू की दृष्टि शनि पर हो, तृतीय अध्याय 10वां भाव शनि, मंगल और गुरू के प्रभाव में होने पर, चतुर्थ अध्याय कुंडली का 9वां भाव तथा कारक ग्रह प्रभावित होने पर, पंचम अध्याय भाव 9 तथा 10 के अंतरपरिवर्तन में लाभ देते हैं।
सबसे अच्छा भागवत कौन कहता है?
सबसे अच्छा भागवत कथा वाचक कौन है? इस प्रश्न के उत्तर में नाम कहना चाहूँगा – विश्व प्रसिद्ध भागवताचार्या साध्वी आस्था भारती जी। यह नाम लिखने के पीछे कारण यह है कि यह साध्वी जी ब्रह्मज्ञानी साधिका भी है।
घर में भागवत कराने से क्या होता है?
भागवत पाठ से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। भागवत पुराण में 18000 श्लोक और 12 स्कंध हैं। भगवान का अर्थ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तारण है। इसलिए पितरों की शांति के लिए भागवत कथा का आयोजन कराना चाहिए।
श्रीमद्भागवत में क्या लिखा है?
इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।
श्रीमद् भागवत कथा प्रथम दिवस
कथा के प्रथम दिन स्वामी सुदर्शनाचार्य द्वारा अपने उद्बोधन में श्रीमद् भागवत महात्म्य के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कलयुग में मनुष्य अपने भावों को सत्संग के जरिए ही स्थिर रख सकता है। सत्संग के बिना विवेक उत्पन्न नहीं हो सकता और बिना सौभाग्य के सत्संग सुलभ नहीं हो सकता ।
Shrimad Bhagwat Katha In Hindi
मित्रों आप की सुविधा के लिए मैंने श्रीमद् भागवत कथा को हिंदी में अनुवाद करके नीचे लिख दिया है आप इसे आसानी से पढ़ सकते हैं अगर आप वीडियो कॉल नहीं करना चाहते तो यह आपके लिए काफी अच्छा विकल्प बन जाता है इसका अर्थ और इसके संसद के सभी लोग यहां पर लिखे हुए हैं यहां से आप पढ़ सकते हैं
[ अथ दशमोऽध्यायः ]
देवासुर संग्राम-श्रीशुकदेवजी बोले-परीक्षित्! सांपों को दूध पिलाने से कोई लाभ नही ऐसा विचार भगवान ने राक्षसों को अमृत नहीं दिया भगवान से विमुख कोई अलभ्य वस्तु प्राप्त कर भी कैसे सकता हैं। देवताओं को अमृत पिलाकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए। जब राक्षसों ने देखा कि उनके साथ धोखा हुआ है उन्होने अपने शस्त्र उठा लिए और देवताओं पर टूट पडे भयंकर देवासुर संग्राम होने लगा देवताओं ने एक तो अमृत पी लिया था दूसरे भगवान की कृपा प्राप्त थी राक्षसों का संहार करने लगे भगवान स्वयं इस युद्ध में राक्षसों को मारने लगे।
इति दशमोऽध्यायः
[ अथ एकादशोऽध्यायः ]
देवासुर संग्राम की समाप्ति-देवासुर संगाम मे कभी देवता विजयी होते थे तो कभी राक्षस दोनों और से ही माया का सहारा ले रहे थे जब राक्षसों का अत्याधिक संहार होने लगा तो वहां नारदजी आए और बोले भगवान द्वारा रक्षित देवताओं अब इन राक्षसों को मत मारो और युद्ध बन्द कर दो नारदजी के कहने से दोनों और से युद्व बन्द हो गया।
इति एकादशोऽध्यायः
संपूर्ण भागवत कथा Bhagwat katha PDF
[ अथ द्वादशोऽध्यायः ]
मोहिनी रूप को देख कर महादेवजी का मोहित होना-एक समय महादेवजी ने जब यह सुना कि भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिला दिया तो उस रूप के दर्शन करने की इच्छा सेले क्षीर सागर पहंचे भगवान ने उनका स्वागत किया और अंत मे महादेवजी ने अपना अभिप्राय भगवान के सामने प्रकट किया भगवान बोले वह रूप तो कामी पुरुषों के लिए है फिर भी कभी दिखाउगाँ कह उन्हें विदा किया जब वे वहां से लौट रहे थे रास्ते मे एक सुन्दर उपवन दिखाई पड़ा वह अत्यन्त रमणीय था वहां एक सुन्दर स्त्री अपने हाथ की गेंद उछाल कर खेल रही थी उसके झीने वस्त्र हवा के झोकों से उड़-उड़ जा रहे थे।
महादेवजी उसके पीछे दौड़ पडे वे भूल गए कि मेरे साथ मेरा परिवार भी है आगे आगे वह स्त्री पीछे-पीछे महादेवजी कभी दूर तो कभी दो अंगुल की दूरी पर रह जाय पर उसे पकड नही पाए काफी प्रयत्न के बाद आखिर उसे पकड लिया इतने में भगवान अपने असली रूप में आ गए शिवजी बहत लज्जित हए और भगवान के चरण पकड लिए भगवान ने उठाकर हृदय से लगा लिया।
इति द्वादशोऽध्यायः
[ अथ त्रयोदशोऽध्यायः ]
आगामी सात मन्वन्तरों का वर्णन श्रीशुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित! अब तक हम छ: मनुओं का वर्णन कर चुके हैं अब सातवें मनु का सुनो इनका नाम है श्राद्वदेव ये विवश्वान-सूर्य-के पुत्र थे श्राद्धदेव के दस पुत्र इक्ष्वाकु आदि थे इन्द्र हुए पुरन्दर सप्तऋषि हुए विश्वामित्र जमदग्नि भारद्वाज गौतम अत्रिी वशिष्ठ और कश्यप इस मनवन्तर मे कश्यपजी की पत्नि अदिति से भगवान वामन का अवतार हुआ वर्तमान मे इनका कार्य काल चल रहा है। अब आगे आने वाले सात मनुओं के बारे मे सुनो आठवें मनु होगें सावर्णि उनके पुत्र होगें निर्भोक आदि इन्द्र बनेगें वैरोचन पुत्र बलि वामन भगवान ने इनसे तीन पैर पृथ्वी मागी थी इस मन्वन्तर के सप्त ऋषि होगे गालव दीप्तिमान आदि।
नवें मनु होगें दक्षसावर्णि अद्भुत नामके इन्द्र होगें। दसवें मनु होगें ब्रह्मसावर्णि हविश्मान आदि सप्तऋषि होगें इन्द्र का नाम होगा शम्भु ग्यारहवें मनु होगें धर्मसावर्णि इनके पुत्र होगें सत्य धर्म आदि अरुणादि सप्तऋषि होगें वैधृत नामके इन्द्र होगें। बरहवें मनु होगें रुंद्र सावर्णि ऋतधामा इन्द्र होगें। तेरहवें मनु होगें देव सावर्णि इन्द्र होगा दिवस्पति। चोदहवें मनु होगें इन्द्र सावर्णि इन्द्र होगा शुचि। ये चोदह मनु भूत वर्तमान और भविष्य तीनो काल मे चलते रहते हैं।
इति त्रयोदशोऽध्यायः
[ अथ चतुर्दशोऽध्यायः ]
मनु आदि के प्रथक प्रथक कर्मों का निरुपण-1. मनु, 2. मनुपुत्र, 3. इन्द्र, 4. देवता, 5. सप्तऋषि मंडल। ये पांचों भगवान के संरक्षण मे त्रिलोकी के शासन का संचालन करते हैं मनु सर्वोपरि शासनाध्यक्ष है उनके पुत्र उनके कार्य में सहयोगी हैं इन्द्र कार्यवाहक शासनाध्यक्ष हैं जो मनु की देख रेख मे कार्य करते है।
देवता इन्द्र के मंत्री मण्डल के सदस्य है जिन्हे अलग अलग विभागों की जिम्मेदारी इन्द्र ने बांट रखी है।
सप्तऋषिमंडल न्यायाधीश मंडल है-सुपीरियम कोर्ट
यदि इन्द्रादि देवता अपने कार्य मे विफल रहते हैं तो सप्त ऋषि मडल उसमे हस्तक्षेप करता है।
इति चतुर्दशोऽध्यायः
संपूर्ण भागवत कथा Bhagwat katha PDF
[ अथ पंचदशोऽध्यायः ]
राजा बलि की स्वर्ग पर विजय-
बले: पदत्रयं भूमेः कस्माद्धरि याचत।
भूत्वेश्वरः कृपण व्रल्लब्धार्थोअपि बबन्धतम्।।
राजापरीक्षित बोले-प्रभो भगवान हरि ने बलि से तीन पैर पृथ्वी कैसे मागी और फिर उसे बांधा क्यों कृपाकर इसे समझावें। श्रीशुकदेवजीबोले-परीक्षित! जब देवासुर संग्राम मे बलि मारे गए तो शुक्राचार्यजी ने उन्हे अपनी संजीवनी विद्या से जीवित कर लिया और उससे एक विश्वजित नामक यज्ञ कर वाया जिससे दिव्य रथ प्रकट हुआ जिसमें कवच अस्त्र शस्त्र रखे थे बलि ने कवच पहना रथ में सवार हुआ शुक्राचार्यजी ने उन्हे एक शंख दिया सेना लेकर अमरावति को चारों ओर से घेर लिया बलि ने शंख बजाया देवतागण भयभीत हो गुरु शरण मे गए बृहस्पतिजी बोले देवताओं अभी समय आपके पक्षमे नही है भृगुवंशी ब्राह्मणों की पूर्णकृपा उन पर है तुम सामना नही कर सकते अत: कहीं जाकर छुपजावो और समय की प्रतिक्षा करो देवता स्वर्ग छोड़कर चले गए बलि स्वर्ग का राज्य करने लगा उस समय बलि से सौ अश्वमेघ यज्ञ करवाये।
इति पंचदशोऽध्यायः
[ अथ षोडषोऽध्यायः ]
कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोब्रत का उपदेश-
एवं पुत्रेषु नष्टेषु देवमातादितिस्तदा
हृते त्रिविष्टपे दैत्यैः पर्यतप्यदनाथ वत।।
एकदा कश्यपस्तस्या आश्रमं भगवान गात
निरुत्सवं निराननदं समाधेर्विरतश्चिरात्।।
शुकदेवजी वर्णन करते हैं जब देव माता अदिति ने अपने पुत्रों को अनाथ होकर इधर-उधर भटकते देखा तो वह बडी दुखी हुई एक दिन उसके आश्रम में कश्यप पधारे वे अभी-अभी समाधि से उठे थे उनकी पत्नि अदिति दीनभाव से बोली प्रभो दिति के पुत्रों ने मेरे पुत्रों का स्वर्ग छीन लिया वे इधर उधर भटक रहे हैं। अत: कोई उपाय बतायें जिससे मेरे पुत्रों का स्वर्ग उन्हें मिल जावे कश्यपजी बोले तुम्हे एक व्रत बताता हूँ
फाल्गुनस्यामले पक्षे द्वादशाहं पयोव्रतः।
अर्चयेदरविन्दाक्षं भक्त्या परमयान्वितः।।
यह पयोव्रत नामक व्रत है फाल्गुन शुक्ल पक्षमे प्रतिपदासे द्वादशी पर्यन्त भगवान नारायण की उपासना करे केवल दूध पीकर रहे।
इति षोडषोऽध्यायः
[ अथ सप्तदशोऽध्यायः ]
भगवान का प्रकट होकर अदिति को वरदान- अदिति ने श्रद्धा पूर्वक उस व्रत को किया तो प्रसन्न होकर शंख चक्र गदा पद्म धारी भगवान प्रकट हो गए अदिति उनकी प्रार्थना करने लगी।
यज्ञेश यज्ञपुरुषाच्युत तीर्थपाद
तीर्थश्रवः श्रवण मंगल नामधेय।।
आपन्न लोक बृजिनो पशमोदयाद्य
शंन: कृधीश भगवन्नसि दीननाथः।।
आप यज्ञों के स्वामी हैं स्वयं यज्ञ भी आप ही हैं आपके चरणों का सहारा लेकर संसार से तर जाते है। आपका यश कीर्तन भी संसार से तारने वाला है आपके नामो का श्रवण मात्र से ही कल्याण हो जाता है आदि पुरुष जो आपकी शरण मे आ जाता है उसकी सारी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं आप दीनों के स्वामी हैं हमारा कल्यण कीजिए। भगवान बोले मैं जानता हूं कि तुम अपने पुत्रों के लिए दु:खी हो मैं शीघ्र ही तुम्हारे गर्भ से अवतार लेकर देवताओं के कार्य को करुंगा तुम निश्चिन्त होकर मेरा ध्यान करो तभी अदिति भगवान के ध्यान में लीन हो गई।
इति सप्तदशोऽध्यायः
संपूर्ण भागवत कथा Bhagwat katha PDF
[ अथ अष्टादशोऽध्यायः ]
वामन भगवान का प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला मे पधारना
श्रोणायां श्रवण द्वादश्यां मुहूर्तेभिजिति प्रभुः।
सर्वे नक्षत्र ताराद्या श्चक्रुस्तजन्म दक्षिण।।
शुकदेवजी बोले-ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर साक्षात भगवान अदिति के सामने प्रकट हो गए। चतुर्भुज रूप में शंख चक्र गदा पद्म धारण किए थे कश्यप अदिति के देखते-देखते उन्होंने ब्रह्मचारी का रूप धारण कर लिया। उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ सविता ने गायत्री का उपदेश किया बृहस्पति ने यज्ञोपवीत कश्यपजी ने मेखला दी वामन भगवान वहां से बलि के यज्ञ में प्रस्थान कर गए।
भगवान को आते देख ऋत्विज गण सोचने लगे क्या ये सूर्य भगवान यज्ञ देखने आ रहे है सहसा उन्होंने यज्ञ मंडप मे प्रवेश किया बलि ने आसन देकर चरण धोए और बोला आज मेरा घर पवित्र हो गया आपको क्या चाहिए हाथी घोड़े गांव या ब्राह्मण कन्या जो आप मांगोगे वही दूगां।
इति अष्टादशोऽध्यायः
[ अथ एकोनविंशोऽध्यायः ]
भगवान वामन का तीन पग पृथ्वी मागना बलि का वचन देना और शुक्राचार्यजी का उन्हें रोकना-श्रीशुकदेवजी बोले-परीक्षित्! बलि के ऐसे वचन सुन भगवान वामन बोले-बलि आपने जो कहा वह आपके कुल के अनुकूल है आपके कुल में ऐसा कोई नहीं हुआ जो दान के लिए मना कर दे प्रहलाद जी का सुयश संसार मे छा रहा है और आपके पिता विरोचन जानते हुए भी कि यह दान माँगने वाला इन्द्र है और छल कर रहा है अपनी आयु का दान उसे दे दिया इसलिए मैं जानता हूँ कि तुम मुझे दान अवश्य दोगे मुझे आप केवल मेरे अपने पैरों से तीन पग पृथ्वी दीजिए। बलि बोले ब्रह्मचारी! तुम बात तो वृद्धों जैसी करते हो और माँगने मे बिल्कुल बच्चे हो मैं त्रिलोकी पति तुम्हे एक द्वीप भी दे सकता हूं वामन बोले यह कामना तो तब भी पूरी नही होती मैं सन्तोषी ब्राह्मण हूं मुझे तीन पग भूमि से अधिक कुछ नही चाहिए। बलि बोले ठीक है जैसी आपकी इच्छा कह संकल्प के लिए तैयार होगए तभी शुक्राचार्यजी बोले बलि सावधान जिसे तुम दान देने जा रहे हो वह साक्षात् विष्णु हैं तुम्हारा सब कुछ छीन लेगे अपने वादे से मुकर जावों क्योंकि जहाँ वृत्ति छिनती हो वहां झूठ बोलने का कोई दोष नहीं होता।
इति एकोनविंशोऽध्यायः
संपूर्ण भागवत कथा Bhagwat katha PDF
[ अथ विंशोऽध्यायः ]
भगवान वामनजी का विराट रूप होकर दो ही पग मे पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना-बलि बोले गुरुजी यह सत्य है कि वृत्ति नष्ट हो रही हो तो झूठ बोलने का कोई दोष नहीं पर जब वे भगवान ही हैं तो सब कुछ उन्हीं का तो है वे चाहे जैसे ले सकते हैं फिर दान के लिए क्यों मना करूं मैं अवश्य दूगा बलि बड़ा प्रसन्न है उसकी माता भी प्रसन्न है और कहती है। भली भई जो ना जली वेरोचन के साथ। मेरे सुत के सामने कृष्ण पसारे हाथ।। बलि की एक बेटी थी रत्न माला भगवान के स्वरुप पर मोहित हो कहने लगी मेरे भी ऐसा सुन्दर बालक हो जिसे मैं स्तन पान कराउं भगवान बोले द्वापर मे तू पूतना बनना तब तेरा स्तन पान करूंगा। बलि ने संकल्प हाथ में ले लिया और छोड दिया।
तद् वामनं रूपम वर्धताद्भुतं
हरेरनन्तस्य गुण त्रयात्मकम्।।
भूः खं दिशो द्यौर्विवरा:पयोधय
स्तिय॑न्नृदेवा ऋषयो यदासत।।
इसी बीच भगवान ने अपने स्वरुप को इतना बढाया कि समस्त त्रिलोकी में भगवान ही नजर आए उन्होंने एक पग मे भू लोक को नाप लिया दूसरे चरण ब्रह्म लोक में पहुंच गया।
इति विंशोऽध्यायः
संपूर्ण भागवत कथा Bhagwat katha PDF
[ अथ एकोविंशोऽध्यायः ]
बलि का बांधा जाना-ब्रह्मलोक में भगवान के चरण को आया देख ब्रह्माजी ने भगवान के चरण को धोया और उस जल को अपने कमंडलु में रख लिया वही पतित पावनी गंगा पृथ्वी पर आकर सब को पवित्र कर रहीपूजा कर ब्रह्माजी बड़े प्रसन्न हुए उसी बीच जामवंत ने भगवान की सात प्रदक्षिणा की भगवान ने बलि को नाग पाश में बांध लिया और कहा-
पदानि त्रीणि दत्तानि भूमेर्मह्यं त्वयासुर।
द्वाभ्यां क्रान्ता मही सर्वा तृतीयमुप कल्पय।।
राक्षसराज तुमने मुझे तीन पग भूमि देने का संकल्प किया था मैंने दो पग मे तेरे समस्त राज्य को नाप लिया अब बता तीसरा पैर कहा रखू अब तुझ नरक जाना पड़ेगा यह दृश्य रत्न माला देख रही थी पहले भगवान को पुत्र रूप में देख रही थी पिता को नाग पाश में बंधा देख बोली ऐसे पुत्र को जहर दे दे इस पर भगवान बोले तू स्तनों से जहर लगा के आएगी मैं उसे भी पी जाउंगा।
इति एकोविंशोऽध्यायः
[ अथ द्वाविंशोऽध्यायः ]
बलि केद्वारा भगवान की स्तुति और भगवान का उस पर प्रसन्न होना-
यद्युत्तमश्लोक भवान् ममेरितं
वचोव्यलीकं सुरवर्य मन्यते।
करोम्य॒तं तन्न भवेत् प्रलम्भनं
पदंतृतीयं कुरु शीर्ण मे निजम्।।
बलि बोले-प्रभो यह सही है कि आपने दो चरणों में ब्रह्म लोक पर्यन्त नाप लिया किंतु अभी नापने के लिए जगह शेष है तीसरा चरण मेरे मस्तक पर रख दें हम संसार के अज्ञानी जीव आपकी महिमा कैसे समझे बडे-बडे ऋषि भी आपकी माया से मोहित हो जाया करते है बलि इस प्रकार कह रहे थे कि वहां प्रह्लाद जी आ गए वे बोले प्रभो आपने अच्छा किया इसे बड़ा अभिमान हो गया था अभिमानी को दण्ड देना भी आप की कृपा ही है इतने में ब्रह्माजी कुछ कहना चाहते वहां बलि की पत्नि विंध्यावलि आ गई और कहने लगी प्रभो आप संसार के कर्ता-धर्ता और संहर्ता है मैं आपको प्रणाम करती हूं ब्रह्माजी बोले स्वामी आपने इस पर कृपा करी है जो इसे अपनाया है अब इसे आप छोड़ दे क्योंकि इसने आप को आत्म समर्पण कर दिया है भगवान बोले मै इस पर प्रसन्न हूं इसे सुतल लोक का राज्य देता हू बलि जावो आनंद पूर्वक सुतल लोक में रहो मैं हमेशा तुम्हारे पास रहूगा।
इति द्वाविंशोऽध्याय
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[ अथ त्रयोविंशोऽध्यायः ]
बलि का बन्धन से छूट कर सुतल लोक को जाना-श्रीशुकदेवजी बोले राजन् भगवान ने बलि का बन्धन खोल दिया और वह सुतल लोक चला गया इस प्रकार भगवान ने स्वर्ग का राज्य बलि से लेकर इन्द्र को दे दिया प्रह्लादजी ने भगवान की प्रार्थना की तथा शुक्राचार्यजी ने भगवान की प्रार्थना की तब भगवान ने उन्हे बलि के यज्ञ को पूर्ण करने की आज्ञा दी यज्ञ पर्ण हआ ब्रह्मादि देवताओं ने भगवान का अभिषेक किया और उन्हे उपेन्द्र का पद दिया और भगवान अन्तर ध्यान हो गए।
इति त्रयोविंशोऽध्याय:
[ अथ चतुविंशोऽध्यायः ]
भगवान के मत्स्यावतार की कथा-श्रीशुकदेवजी बोले-राजन! एक हजार दिव्य वर्षों का ब्रह्माजी का एक दिन होता है और उतनी ही बडी रात्रि-रात्री में जब बृह्मा शयन करते हैं तभी ब्राह्मी प्रलय होती है। एक समय की बात है जब द्रविड़ देश का राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर तर्पण कर रहा था। उसकी अंजली मे छोटी सी मछली का बच्चा आ गया दयावश उसे राजा ने अपने कमंडलु में डाल लिया जो घर आतेआते इतना बढ़ गया कि कमंउलु भर गया राजा ने उसे तालाब में डाल दिया जब तालाब भी भर गया तब उसे समुद्र में डालते हुए राजा बोले मत्स्य रूप में मोहित करने वाले आप कौन देव हैं।
भगवान बोले आज के सातवें दिन ब्राह्मी प्रलय होगी उस समय तुम्हें समुद्र में एक नाव मिलेगी तुम समस्त जीवों के बीजों को लेकर नाव में बैठ जाना इतना कह भगवान अन्तर्ध्यान हो गए ब्राह्मी निषा आई ब्रह्माजी को नींद आने लगी तो चारों वेद उनके मुख से निकल बाहर आ गए जिन्हें हयग्रीव राक्षस चुरा कर ले गया उसे मारने के लिए ही भगवान ने मत्स्यावतार धारण किया निषा प्रलय हुइ एक नाव जिसका रस्सा मत्स्य के सींग में बंधा था आई जिसका प्रतिक्षा सत्य ब्रत कर रहे थे वे उसमें बैठ गए निषा पर्यन्त उसमे घूमत रही जब निषा समाप्त हई भगवान ने हयग्रीव को मार वेद ब्रह्माजा का ५ दिए सत्य ब्रत को सातवे वैवस्वत मनु घोषित कर दिए।
इति चतुविंशोऽध्यायः
इति अष्टम स्कन्ध समाप्त
Conclusion – Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download
मुझे उम्मीद है कि आपको Shrimad Bhagwat Katha के बारे में सभी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और आपको यह भी पता चल गया होगा कि आप Shrimad Bhagwat Katha In Hindi PDF Download किस प्रकार से करना है अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर करें जो भगवत गीता और श्री कृष्ण भगवान विष्णु और हिंदू धर्म में विश्वास है और सच्चे हिंदू हैं|